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मधुकर नहीं मन / राहुल शिवाय

329 bytes added, 11:22, 18 फ़रवरी 2020
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पुनः जन्म लेकर आऊँगा।इस हृदय में तुम बसे हो मैं किसे अधिकार दूँगा।तुम नहीं हो पास फिर भी मैं तुम्हें ही प्यार दूँगा।
मैंने तुममे चाह जगाई, लोलुपी मधुकर नहीं मन प्रेमिल पथ की राह दिखाईसिर्फ जो मकरंद चाहे,पर इसपर अधिकार जो तेरादेह - चन्दन से लिपटकर प्राण ! तुमको न दे पाऊँगा।पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।गंध औ आनंद चाहे।
कोसों दूर रहो तुम मुझसे, न जाओगी फिर भी हृदय स्वयं से,मैंने बस तुमको चाहा है- जीवन भर तुमको चाहूँगा। खोया हुआ हूँ पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।मैं किसे संसार दूँगा।
अपनास्वाति की इक बूँद पाकर मणिक का निर्माण होता,प्रेम और भक्ति मिले तो देव -अपना नियम यहाँ हैसा, पाषाण होता।पाषाणों मेँ हृदय कहाँ है जो प्रथम अभिसार अर्पित क्या वही अभिसार दूँगा। ज्वाल ठन्डे राख से अब तुम कहो कैसे मिलेगा, यदि मेरे वश मेँ हो जाए- विरह, दुख, आँसू, दहन का भाग्य बस मुझसे जुड़ेगा। मानव जन्म न दुहराऊँगा।अब नहीं कचनार मुझमें पुनः जन्म लेकर आऊँगा।।मैं किसे पतझार दूँगा।
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