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और सुबह है / वेणु गोपाल

883 bytes removed, 17:08, 3 सितम्बर 2008
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}}<poem>
खतरे पारदर्शी होते हैं।
खूबसूरत।
अपने पार भविष्य दिखाते हुए।
 
जैसे छोटे से गुदाज बदन वाली बच्ची
किसी जंगली जानवर का मुखौटा लगाए
धम्म से आ कूदे हमारे आगे
और हम डरें नहीं। बल्कि देख लें
उसके बचपन के पार
एक जवान खुशी
 
और गोद में उठा लें उसे।
 
ऐसे ही कुछ होते हैं खतरे।
अगर डरें तो खतरे और अगर
नहीं तो भविष्य दिखाते
रंगीन पारदर्शी शीशे के टुकड़े।
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