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11:32, 6 मार्च 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मोहित नेगी मुंतज़िर
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
साथ में जी लूं या जीते जी मर जाऊं
अपना सब कुछ तुझको अर्पण कर जाऊं
तेरी ख़ातिर छोड़ दिया घर बार अपना
बोल मैं क्या मुंह लेकर अपने घर जाऊं
दुनिया की सारी दौलत इक ओर करूँ
तेरा साथ अगर पाऊं तो तर जाऊं
दिल का कोना खाली खाली लगता है
मिल जाये जो साथ तिरा तो भर जाऊं
मेरा बस इक ख़्वाब है 'मोहित' जीवन में
कुछ नेकी के काम जहां में कर जाऊं।
</poem>