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06:59, 25 मार्च 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय राही
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
पुराने ठाँव से रहती है लिपटी ।
ग़रीबी गाँव से रहती है लिपटी ।
हमारे खेत की मिट्टी है साहब !
हमेशा पाँव से रहती है लिपटी ।
इसे पानी से नफ़रत हो गई क्या?
ये मछली नाँव से रहती है लिपटी ।
वो मेरी जान है 'राही' जो मेरे,
बदन की छाँव से रहती है लिपटी ।
</poem>