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चमकती हुई आँखों से कैसे रचूँ मैं वह सब ?
हम समय में गुम हो चुके हैं
ढकेल दिया गया है हमें समय के बाहरमें
रात और अतल गहराइयों के पार उड़ती आत्माएँ हैं हम ।
कौन जानता हो सकता है कि ईश्वर के चारों ओर उड़ान नहीं भरी है हो हमनेऔर उसे देखे बिना ही बिजली की सी तेज़ गति से हम गुज़र गए हों हम उसके पास से
इसलिए उसने हमारे बीजों को फेंक दिया
अन्धेरी पीढ़ियों के बीच ।
अब दोषी कौन है ?
कौन जानता है हो सकता कि हम बहुत पहले ही नहीं मर गए होते ?
बादलों के गोले हमारे साथ ऊपर ही ऊपर उड़ते जाते हैं
हलकी हवा पहले ही हमें लुंज-पुंज कर रही है
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