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<poem>
हमारा हर काम, हर चीज़ चोट पहुँचाती है एक-दूसरे को
और हम में से किसी ने भी दूसरे को माफ नहीं किया है।
तुम्हारी ही तरह दुखदायी और उत्पीड़क हूँ
मैं तुम्हारे ही आस-पास रहता रहती हूँ।
हर छुअन बढ़ाती है
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