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02:56, 2 अप्रैल 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय राही
|अनुवादक=
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<poem>
जब बारिश होती है
सब कुछ रूक जाता है
सिर्फ़ बारिश होती है ।
रूक जाता है बच्चों का रोना
चले जाते हैं वो अपनी ज़िद भूलकर गलियों में
बारिश में नहाते है देर तक ।
रूक जाता है
खेत में काम करता हुआ किसान
ठीक करता हुआ मेड़ ।
पसीने और बारिश की बूँदे मिलकर
नाचती हैं खेत में।
लौट आती है गाय-भैंसे मैदानों से
भेड़- बकरियाँ आ जाती है पेड़ो तले
भर जाते है जब तालाब-खेड़
भैंसे तैरती हुई उनमें उतर जाती है,गहराई तक।
रूक जाते हैं राहगीर
जहाँ भी मिल जाती है दुबने की ठौर ।
पृथ्वी ठहर जाती है अपने अक्ष पर
और बारिश का उत्सव देखती है ।
</poem>