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हालात वही हैं, जज़्बात वही हैं।
क़िस्मत में बशर की सदमात वही हैं।
तन्हाई में गाए नाकाम मुहब्बत,
मेरे भी लबों पर नग़्मात वही हैं।
 
जिनसे कि लड़ा मैं अपनों की लड़ाई,
हस्ती में अभी तक औक़ात वही हैं।
 
कोशिश तो बहुत की दुनिया ने मगर वो,
बदला न ज़रा-सा आदात वही हैं।
 
चाहे तो मिटाना हर ‘नूर’ हुकूमत,
पर घर में हमारे फ़िक्रात वही हैं।
</poem>
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