गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ऊँची मुँडेर पर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
587 bytes added
,
02:15, 26 अप्रैल 2020
लिपटी थी धुंध की
शीतल शॉल
7
उठते गए
भवन फफोले- से
हरी धरा पे
8
ठूँठ जहाँ हैं
कभी हरे-भरे थे
गाछ वहाँ पे
9
लोभ ने रौंदी
गिरिवन की काया
घाटी का रूप
10
हरी पगड़ी
हर ले गए बाज़
चुभती धूप
11
हरीतिमा की
ऐसी किस्मत फूटी
छाया भी लूटी
12
कड़ुआ धुआँ
लीलता रात-दिन
मधुर साँसें
<poem>
वीरबाला
4,942
edits