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02:22, 26 अप्रैल 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|संग्रह=
}}
[[Category:हाइकु]]
<poem>
1
विषम पल
जीवन की छाया- सा
तेरा आँचल।
2
क्रूर है काल
सीधे ग्रहों ने चली
कपट- चाल।
3
'''तुम हो आद्या!'''
तुझे जब सताया
बोलो क्या पाया!
4
चली सवारी
साथ न कोई सगा
अंत अकेले।
5
जीवन मिला
कुछ ने बोया विष
विष ही खिला।
6
प्रलय -पल
पता यह चला कि
सगा न कोई।
7
प्राणों के प्यारे
आलिंगन- भय से
हुए किनारे।
8
सृष्टि रहेगी
क्रूर- कपटकथा
सदा कहेगी।
9
प्रतीक्षा करे
काल बैठा देहरी
दर्प न टूटे।
10
आएगी भोर
जो बचेंगे, मिलेंगे
फिर खिलेंगे।
<poem>