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क्यूँ जी सोरो करै मिनख
 
परायै घरां गी बाताँ
 
सुण सुण गे
 
जकी बा दुसराँ गै
 
घरां मे होवण लाग री है
 
बा ही तो तेरे घर मे हुवै
 
तुं भींत रै चिप्योड़ो इनै
 
बो भी तो बिने
 
चिप्योड़ो खड़यौ है
 
क्यूँ कोनी सोचे तूं कै
 
भीँता गै भी कान होवै
 
आज तुं सुणसी बिंगी
 
काल बो तेरी सुणसी
 
क्यूँ सरमाँ मरै मिनख
 
मोरियो पगाँ कानी देख गै रोवै
 
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रचना: महावीर जोशी पुलासर -सरदारशहर