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कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
छोड छोरू कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी।।उघारी।।
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
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