गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है / इरफ़ान सिद्दीकी
391 bytes removed
,
02:14, 18 मई 2020
हाँ सफर का सर-ओ-सामान बहुत करता है
अब ज़बाँ खंज़र-ए-कातिल की सना करती है
हम वो ही करते है जो खल्त-ए-खुदा करती है
हूँ का आलम है गिराफ्तारों की आबादी में
हम तो सुनते थे की ज़ंज़ीर सदा करती है
</poem>
Shrddha
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits