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14:05, 23 मई 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हिमानी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
अकेले कितना उदास दिखता है जीरो
जैसे कोई अस्तित्व ही न हो
जैसे ही कोई संख्या करीब आकर खड़ी होती है
ऐसे लगता है- खिल उठा हो
कुछ होकर भी
जीरो के बिना संख्या, ज्यादा कुछ नहीं हो पाती
कुछ न होकर भी
संख्या के साथ, जीरो बहुत कुछ हो जाता है
जिंदगी, जीरो जैसी हो गई है
जिसे हर वक्त
एक संख्या की तलाश है।
</poem>