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कोई ऐसी सज़ा न दे जाना।जाने कब के बिखर गये होते।ज़िंदगी की दुआ ग़म न दे जाना॥होता, तो मर गये होते।
दिल काश अपने शहर में फिर हसरतें जगा के मेरेगर होते,दर्द का सिलसिला न दे जाना॥दिन ढले हम भी घर गये होते।
वक़्त नासूर बना दे जिसकोइक ख़लिश उम्र भर रही, वर्नायूँ कोई आबला न दे जाना॥सारे नासूर भर गये होते।
सफ़र में उम्र ही कट जाए कहींदूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,इस क़दर फ़ासला न दे जाना॥क्यूँ अबस बालो-पर गये होते।
साँस दर साँस बोझ लगती हैग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,ज़िंदगी बारहा न दे जाना॥पार वरना उतर गये होते।
इस जहाँ के अलम ही काफ़ी हैंकुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,और तुम दिलरुबा दिल न दे जाना॥जाते, तो सर गये होते।
पीठ में घोंपकर कोई ख़ंजरबाँध रक्खा हमें तुमने,वरनादोस्ती का सिला न दे जाना॥ख़्वाब बनकर बिखर गये होते।
इल्म हर शय का उन्हें है हम भी "साबिर"के साथ, रात कभीतुम कोई मशवरा न दे जाना॥ख़्वाहिशों के नगर गये होते।
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