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<poem>
गैरै झांझरकै
खुल जावै थारी आंख
आपूं-आप
घट्टी रै घुरीजतै सुर में
सांभ लेवै ग्वाड़ी रौ परभात
भोळावण परबारी !

थारै हरण सूं जगायां
जागै आंगणौ
इंछा सूं अंगेजै चूल्हौ आग
थारै हेज नै पिछांणै
अंतस में इमरत धारयां सांजणी!

थूं पोखै उण कामधेन रा
बाछड़ां री आस
थारी आफळ रै आपांण
हुलसै पालणै में किलकारी!
</poem>
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