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12:03, 5 जून 2020 {{KKGlobal}}
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<poem>
रात जरवनीं
दिन झुलसवनीं
गोड़े-गोड़े रस्ता नपनीं
अरमानन के फुंकनीं-तपनीं
तब जा के कुछ
हुनर भेंटाइल
नाता के पूँजी बटोराइल
कउड़ी-कउड़ी खरच के
खुद के
जिनगी में जे हासिल भइल
उहो सब हम अरपित कइनीं
एह दुनिया के
जे कुछ लगे बाँचल बाटे
नइखे कुछहू नरम -मोलाएम
जे कुछ लगे बाँचल बाटे
उ बाटे बस लोहा-लक्कड़
बोल जोगीरा....
अक्कड़-बक्कड़
</poem>