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उत्तर में सोमेसर खाडा
दक्खिन गंडक के जलधारा
पूरब बागमती के जानी
पश्चिम तिरबेनी जी बानी
माघ मास लागेला मेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चलीं देखलीं भैसालोटन
अब नइखे उ बाघ ककोटन
तिरबेनी पर बान्ह बन्हल बा
कोसन तक घर-बार बनल बा
सांझे जग-मग जोत जरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
पूल के रचना अजबे बाटे
बदल गइल बा सरबस ठाटे
देखत में न मन अकुताला
उन्हवे आपन राज बुझाला
बाटे बनल बराज बुछेला
चंपारण के लोग हँसेला।
नइखे तिरथ से तनिको कम,
नियरे बाल्मीकि के आश्रम
जहवां बाजेला ढोल -मृदंग
साधुन के होला सत्संग
मंह मंह चारू ओर करेला
चंपारण के लोग हँसेला।
धन धन श्री धनराजपूरी के,
खोजले आश्रम बाल्मीकि के
हम का करब बड़ाई उनके
दुनिया गाई उनका गुन के
अइसन अइसन लोग बसेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहवें रहे विराट के नगरी
जंहवा पांडव कइले नोकरी
अर्जुन इहवें कइले लीला
इहवे बा विराट के टीला
बरनन वेड कुरान करेला
चंपारण के लोग हँसेला।
परल कभी पानी के टान
अर्जुन मारले सींक के बान
सींक बान धरती के गईल
सिकरहना नदी बह गईल
एकर जल हर घड़ी बहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
नगर किनारे सुन्दर बगहा
मालन के ना लागे पगहा
परल उहंवा बा सउसें रेत
चरि के माल भरेला पेट
रेल के सिलपट इहें बनेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहें मसान नदी बउरहिया
उपरे डूगरे रेल के पहिया
भादों में जब इ फूफुआले
एकर बरनक कहीं कहान्लें
बड़का -बड़का पेड़ दहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
रामनगर में राजमहल बा
शहर - बाज़ार में चहल- पहल बा
बा विशाल मंदिर शंकर के
कहाँ कहाँ बा ओह परतर के
कंचन के त्रिशूल चमकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
रामनगर राजा नेपाली
मंगन कबो न लौटे खाली
इहाँ हिमालय के छाया बा
एकर कुछ अजबे माया बा
इहें नदी में स्वर्ण दहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
रामनगर के धनहर खेती
एक-एक खेत रहू के पेटी
चार महिना लोग कमाला
आठ महिना बइठल खाला
दाना बिना केहू ना मरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहाँ चानकी पर जाई चढ़
इहें लौरिया के नंदनगढ़
केहू कहे भीम के लाठी
गाडलि बा पत्थर के जाठी
लोग अशोक के लाट कहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
नरकटियागंज देखीं गल्ला
मंगल सनीचर हाट के हल्ला
किनी बासमती के चाउर
अन्न उहवाँ ना मिली बाउर
भात बने बटुला गमकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चल के देखलीं योगापट्टी
बा जहाँ बिछल तेल के पट्टी
हित देश के कुछ लोग आई
सभे मिल के करी खुदाई
देखि केतना दिन लागेला
चंपारण के लोग हँसेला।
आगे बढीं चलीं अब बेतिया
बीच राह में बा चनपटिया
इहाँ बीके मरचा के चिउरा
किन -किन लोग भरेला दउरा
गाड़ी-गाडी धान बिकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
बेतिया राजा के राजधानी
रहले भूप करन अस दानी
पश्चिम उदयपुर बेतवानी
बढ़िया सरेयां मन के पानी
दूर दूर के लोग पियेला
चंपारण के लोग हँसेला।
बेतिया के मीना बाज़ार
सभ बाज़ारन में उजियार
बाटे अब तक बाग़ हजारी
मेला लगे दसहरा भारी
घोडा हाथी बैल बिकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
बेतिया के गिरजा मशहूर
भईल रहे भूकंप में चूर
फेर बनल बा अइसन बांका
बदल गईल बा ओकर खाका
इनरासन के जोत झरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चाउर में झुमका के जानी
संतपुर के पटुवा मानी
रेल के जंक्सन नरकटिया के
आउर सराहीं गुड योगिया के
चीनी के इ मात करेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहवे बसल सुगौली भाई
गोरे -गोरखे भईल लड़ाई
हारे पर जब अइलें गोरा
धइ दिहलें गोली के झोरा
भईल सुलह इतिहास कहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चंपारण में गढ़ मोतिहारी
भइल नाम दुनिया में भारी
पहिले इहे जिला जागल
गोरन के मुंह करिखा लागल
मोतिहारी के नाम तपेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
चकिया उँख के मिल पुराना
मेहसी सिप बटन कारखाना
सटे बहे नदी सिकरहना
पेन्हे लोग मोतिन के गहना
सूपन मोती रोज झरेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
एही जिला में भितिहरवा बा
गाँधी आश्रम नाम परल बा
गाँधी जी चम्पारण अइले
इहें पाहिले सत्याग्रह कइले
लिलहा आबो नाम जपेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
बेतिया से दखिन कुछ दूर
बथना गाँव बसे मसहूर
इहवा लाला लोग के बस्ती
धंधा नोकरी ओ गिरहस्ती
केतना एम.ए.लोग बसेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
इहवें के भैया देहाती
रहले उ कवि 'चूर' के साथी
कविता बा उ देहिया नइखे
'गगरी भरल खीचतें नइखे'
रटना अबहूँ लोग करेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
चंपारण के लोग हँसेला
कांवरथू के दिखी रावा
अरेराज बउरहवा बाब
फागुनी तेरस नीर ढरेला
नामी अरेराज के मेला
ओके दर्शन लोग करेला ।
चंपारण के लोग हँसेला
अइसन बहुत जिला के बस्ती
लेकर इहाँ हाट परवस्ती
केहू नौकरी, केहू नाच करेला
मगन लोग दिन रात रहेला
केतना लोटा -झाल बहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
खाए में जब कटपट भइले
भागि में चंपारण अइले
मांगी मांगी धन -धान कमइले
मंगन से बाबू बन गइले
ऐसन केतना लोग बसेला
चंपारण के लोग हँसेला।
सब दिन खइले सतुआ लोटी,
इहाँ परलि मचिया पर बेटी
बाप के दुःख भूल गइल बीटा
भोर परल माटी के मेंटा
अब त लाख पर दिया जरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
केहू संत के रूप बनावे
केहू बीन बजावत आवे
कतने कतने भांट पंवरिया
बनिके आवे स्याम संवरिया
इहें सभकर बाँह गहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
करिहें का, कवि लोग बड़ाई
जग चंपारण के गुण गाई
अपन कमाई अपने खाले
केहू से ना मांगे जाले
इहे देखि दुश्मन हहुरेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
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