957 bytes added,
07:09, 7 जून 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>
बरखा के दिन उतर चुकल बा
कुचकुच अनहरिया पसरल बा
अरजल धन खतम हो गइल
बांचल बा अब ऊहो जाई
तबो खतम ना होखी दुनिया
फेर से सपना देखल जाई
सपना बा त जिनगी बाटे
जिनगी बा त सपना बाटे
आन्ही पानी आई जाई
समय दुखाई, समय रिगाई
आई प्रलय त देखल जाई
आँख नीन से माँतल बाटे
कुछऊ होखे सूतल जाई
कुछ ना बाँची तब्बो भइया
सपना आस के देखल जाई ।
</poem>