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<poem>
कुहुकत-कुहुकत कब ले आखिर
कठुआइल ई समय कटाई !
कब ले आखिर गावल जाई
कबले आखिर रोअल जाई
कठपुतरी बन जीयल जाई
ना-ना भाई, अब ना भाई !
हाथ हाथ के दूरी तोड़
हुकुम बजावल अब त छोड़
गर के पगहा अब तोड़
कठपुतरी में जान जियावे
अब आपन पहचान बनावे
गोड़ टिकावे खातिर धरती
उड़ े बदे असमान बनावे !
</poem>
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