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08:47, 7 जून 2020 {{KKGlobal}}
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<poem>
रात और दिन की
आपाधापी
अंधीदौड़ अंतहीन सुरंग की
हिसाब –किताब के बाद
हथेली में टपके
चंद खोटे सिक्के
इस भाग –दौड़ में
हम कही छुट गए
कुछ टूट गए
कुछ फुट गए
खेत से पेट तक का सफर
और सफर की थकान के बाद
सराय रूपी घर में पड़े बिस्तर पर
रोज का लुढ़कना
फिर सुबह को जगना
और फिर
एक नये सफर की तैयारी
यह है अपनी लाचारी
</poem>