1,407 bytes added,
08:08, 13 जून 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>
उमरिया ई झंझट बेसाहे में लागल
विविध लोग के चित्त थाहे में लागल।
रहीं एगो नोकर मिलल खूब ठोकर
भले दुष्ट लोके सराहे में लागल।
सभा अउर संस्था में बीतल अवस्था
जिनगिया ई चंदा उगाहे में लागल।
सफलता विफलता कुछो ना बुझाइल
समय बाकिर बहुते कराहे में लागल।
मदत के भरोसा दियाईल खुशी से
मगर कुछ भला लोग डाहे में लागल।
रहल चाह लेकिन ई कमजोर जीवन
बहुत विघ्न के बान्ह ढाहे में लागल।
फकत जोश में काम जे जे नधाइल
फंसे से ही,से-से निबाहे में लागल।
चलल एक ई बैल कोल्हू के जब से
ठहर ना सकल जन्म राहे में लागल।
</poem>