मेरे कुछ भी कहने यहाँ तक कि हाँ-हूँ से भी डर था
अमावस में एक जुगनू भी ख़तरा है
एक ने तो अचानक चलते-चलते पूछ दिया
आपको कौन-सा फूल पसन्द है
और मैं बस फँस ही जाता कि याद पड़ा डर है
लगातार उनकी बात पर ताली बजाता
सभी पितरों नदियों पर्वतों को गाली देता
किसी तरह साबित करता कि मैं भी वही हूँ जो वे हैं
कि मैं भी ख़ुद उनके द्वार का पाँवपोश उनके न्यायाल्य के
गुम्बद का परकटा कबूतर
पर उन्हें विश्वास न था
मेरी आँख में कुछ था जो घुलता न था
और मेरी रीढ़ में थी कलफ़
और शायद रोओं से कभी-कभी फूटता था धुआँ
और सबसे अलग बात ये कि मैं अपना खाता अपना ओढ़ता
व्यवस्था वैसे खुली थी मुक्त पर दिमाग बंद ही शोभता है
इसीलिए वे परेशान थे इसीलिए मैं लगातार घिरता जा रहा था
जैसे सूअर पकड़ते हैं घेर कर
और एक दिन आख़िर मेरे मुँह से निकल ही गया
मारना ही है तो मार दो, बहाना क्यों?