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|रचनाकार=पद्माकर शर्मा 'मैथिल'
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<poem>
मुझ को पहचान गए हो तो बताओ यारों।
मुझ से मेरा ही तआरुफ़ तो कराओ यारों॥

उम्र होती है नहीं झूठ की घटाओं की।
सच के सूरज की हक़ीक़त न छिपाओ यारों॥

सिर्फ़ आइना बदलने से कोई लाभ नहीं।
दाग चेहरे के ये अपने तो मिटाओ यारों॥

पिछले सैलाब में पानी था गले तक आया।
तुम कहाँ पर थे खड़े यह तो बताओ यारों॥

खिड़कियाँ जब तक खुलेंगी तो हँसेंगे दरपन।
अपने चेहरे से मुखौटे तो हटाओ यारों॥

बे-वफ़ा कह के ना बदनाम करो दुनिया में।
इस तरह से मेरी क़ीमत ना घटाओ यारों॥

जिसके जलते ही मुहब्बत का उजाला फैले।
शम्म एसी ही कोई आज जलाओ यारों॥
</poem>
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