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गुल हो समर हो शाख़ हो किस पर नहीं गया / हस्तीमल 'हस्ती'
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12:01, 18 जून 2020
ख़ुशबू पे लेकिन एक भी पत्थर नहीं गया
सारा
स़फर
सफ़र
तमाम हुआ ज़हन से मगर
रस्ते की धूप-छाँव का मंज़र नहीं गया
हम भी
म़काम
मक़ाम
छोड़ के इज़्ज़त गँवाएँ क्यूँ
नदियों के पास कोई समन्दर नहीं गया
Abhishek Amber
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