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यथार्थ इन दिनों / मंगलेश डबराल
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06:42, 20 जून 2020
और विचारों स्वप्नों स्मृतियों को फटे हुए काग़ज़ों की तरह उड़ा रही है
एक अंधेरी सी काली सी चीज़
हिंस्र पशुओं से भरी हुई एक रात चारों ओर
इकठ्ठा
इकट्ठा
हो रही है
एक लुटेरा एक हत्यारा एक दलाल
आसमानों पहाड़ों मैदानों को लांघता हुआ आ रहा है
Abhishek Amber
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