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यहाँ थी वह नदी / मंगलेश डबराल
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06:45, 20 जून 2020
एक नाव
लोगों का इन्तज़ार कर रही थी
और पक्षियों की
कतार
क़तार
आ रही थी पानी की खोज में
हम अपने चेहरे देखते थे हिलते हुए
उसके किनारे थे हमारे घर
हमेशा
उफ़नती
उफनती
अपने तटों और पत्थरों को प्यार करती
उस नदी से शुरू होते थे दिन
Abhishek Amber
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