धूप में खिले हुए फूल, और
चाँदनी में सरकती हुई नदियाँ
इनका अन्तिम अर्थ आखिर है क्या?
केवल तुम्हारी इच्छा?
और वह क्या केवल तुम्हारा संकल्प है
जो धरती में सोंधापन बन कर व्याप्त है
जो जड़ों में रस बन कर खिंचता है
कोंपलों में पूटता फूटता है,
पत्तों में हरियाता है,
फूलों में खिलता है,