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हवा ख़िलाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ / डी. एम. मिश्र
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10:22, 9 जुलाई 2020
कोई पर्दा नहीं है कुछ नहीं छुपाता हूँ
अनेक शेर
मेर
मेरे
ज़ाया हो गये फिर भी रदीफ़ , क़ाफ़िया ,
बहरेा
बहरो
वज़न निभाता हूँ
न मैं कबीर न ग़ालिब न मीर ,मोमिन ही
मिला जो ज़ख़्म ज़माने से वही गाता हूँ
</poem>
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