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आखिर कब तक / विजयशंकर चतुर्वेदी
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16:23, 9 जुलाई 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKAnthologyVarsha}}
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<poem>
गाँठ से छूट रहा है समय
हम भी छूट रहे हैं सफर में
हड्डियों से खाल छूट गई
आखिर कब तक नहीं छूटेगी सहनशक्ति?
</poem>
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