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{{KKRachna
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी
|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKAnthologyVarsha}}{{KKCatKavita}}<poem>
झाँझ बजती है तो बजे
मँजीरे खड़कते हैं तो खड़कते रहें
शोकाकुल परिजन ले जाएँ तो ले जाएँ
मैं जलूँगा नहीं।
</poem>
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