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हाय चील / जीवनानंद दास / सुरेश सलिल
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13:28, 11 जुलाई 2020
टीस से छटपटाना चाहेगा!
हाय चील,सुनहरे डैनों वाली चील
भरे बादलों वाली इस दोपहरी में
धानसीढ़ी नदी के पास उड़ उड़ कर
तुम और न रोओ !
</poem>
अनिल जनविजय
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