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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा
}}
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<poem>रे पपीहे पी कहाँ?<br><br>
खोजता तू इस क्षितिज से उस क्षितिज तक शून्य अम्बर,<br>लघु परों से नाप सागर;<br><br>
नाप पाता प्राण मेरे<br>प्रिय समा कर भी कहाँ?<br><br>
हँस डुबा देगा युगों की प्यास का संसार भर तू,<br>कण्ठगत लघु बिन्दु कर तू!<br><br>
प्यास ही जीवन, सकूँगी<br>तृप्ति में मैं जी कहाँ?<br><br>
चपल बन बन कर मिटेगी झूम तेरी मेघवाला!<br>मैं स्वयं जल और ज्वाला!<br><br>
दीप सी जलती न तो यह <br>सजलता रहती कहाँ?<br><br>
साथ गति के भर रही हूँ विरति या आसक्ति के स्वर,<br>मैं बनी प्रिय-चरण-नूपुर!<br><br>
प्रिय बसा उर में सुभग!<br>सुधि खोज की बसती कहाँ?<br><br/poem>
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