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राग भैरूँ / पृष्ठ - ३ / पद / कबीर

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जीत्या डूबै हार्‌या तिरै, गुर प्रसाद जीवत ही मरै।
दास कबीर कहै समझाइ, केवल राम रहौ ल्यो लाइ॥349॥
'''भावार्थ''' - कबीर कहते हैं कि हे मन! तुम बस केवल ज्ञान की बातों पर विचार करो। ज्ञान की विचारधारा और हरि के भजन द्वारा ही हमारे जीवन के सारे दुख नष्ट हो सकते हैं। जब तक हम, मैं, मैं, (अहंकार) में विश्वास रखते हैं जब तक हमारे भीतर अज्ञानता का भाव रहता है। तब हमारा कोई भी कार्य पूर्ण या सिद्ध नहीं हो सकता है। जब यह 'मैं ' का भाव मिट जाता है तब हमारा अहंकार भी मिट जाता है तब स्वयं भगवान आकर हमारे सभी कार्यों को सिद्ध कर देते हैं। जब तक अहंकार रूपी सिंह हमारे मन रूपी जंगल में निवास करता है तब तक सद्कार्य रूपी फूल, चेतना रूपी फूल व ईश्वर भक्ति रूपी फूल हमारे भीतर नहीं खिल सकते हैं। जब तक सुधि विचार रूपी सियार, अहंकार रूपी सिंह को नहीं खाता है तब तक हमारे मन रूपी वन में पुष्प नहीं खिल पाते हैं। हमेशा याद रखो कि जो जीतने वाला, हमेशा अहंकार में डूब जाता है और जो पराजित व्यक्ति होता है वह शुद्ध विचारों में डूबकर चेतना के पार उतर जाता है क्योंकि पराजित के पास कोई अहंकार नहीं होता है। गुरु की कृपा से ही हर व्यक्ति का जीवन तृप्त होता है तथा उसकी समस्त विचारधारा सांसारिक ना होकर ईश्वर को समर्पित हो जाती है। कबीर दास जी समझाते हुए कहते हैं अपना ध्यान केवल राम नाम के दीपक में ही लगाओ वही जीवन तारेगा।
* विशेष -कबीर के अनुसार अहंकार का भाव इंसान को डूबा देता है जबकि ईश्वर भक्ति के द्वारा ही इंसान 'मैं ' का भाव छोड़कर शुद्ध चेतना की प्राप्ति कर ईश्वर के चरणों में समर्पित होता है और उसका जीवन तर जाता है।
जागि रे जीव जागि रे।
ऐसी जागणी जे को जागै, तौ हरि देइ सुहाग रे।
कहै कबीर जग्या ही चाहिए, क्या गृह क्या बैराग रे॥350॥
'''भावार्थ''' - कबीर यहां पर सभी जीवों को जागृत होने के लिए कह रहे हैं। (यहां पर जागने का अर्थ नींद से जागना नहीं है। ) उनके अनुसार काम, क्रोध, लोभ, मोह व द्वेष जैसे चोर हमारे चारों और घूम रहे हैं और हम इन चोरों का डर जागृत होकर ही भगा सकते हैं। बार-बार पहरे लगा कर हम इन चोरों से मुक्ति पा सकते हैं। राम की रट लगा- लगा कर और राम शब्द के पहले अक्षर 'रा' की एक टोपी बनाकर धारण कर ले और राम के अंतिम 'म' अक्षर को हम एक मजबूत कवच बना कर पहन लें। ज्ञान को ग्रहण कर उसी ज्ञान रूपी बहुमूल्य रत्न से हम एक तलवार बना लें और फिर इस तलवार द्वारा हम इस दुनिया के जितने अज्ञान हैं उसे समाप्त कर सकते हैं। जब हम अज्ञान रूपी शत्रु का इस ज्ञान रूपी तलवार से विध्वंश कर देंगे तब हमारा भाग्योदय निश्चित है। भिन्न प्रकार के इस जागरण में जो व्यक्ति स्वयं पर विजय पा लेता है उसे भगवान अपना स्नेह देते हैं, सौभाग्य देते हैं। तब हमारी आत्मा भी सौभाग्यशाली हो जाती है। कबीर कहते हैं संसार के प्रत्येक व्यक्ति को जागृत हो जाना चाहिए। चाहे वह घर- गृहस्थी वाला हो। चाहे वह साधु सन्यासी या कोई बेरागी हो।
 
*विशेष- कबीर के अनुसार जो अपने आत्मा का जाग कर लेता है वह इस संसार से परे होकर परमात्मा के निकट पहुँच जाता है। फिर उसे किसी भी प्रकार की सांसारिक लालसाएँ बाँध नहीं सकती।
जागहु रे नर सोवहु कहा,
कहै कबीर कछू आन न कीजै, राम नाम जपि लाहा दीजै॥355॥
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|लेखक=उषा दशोरा
|योग्यता=सहायक शिक्षिका (हिंदी)
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