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सेस गनेस महेस दिनेस / रसखान

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|रचनाकार = रसखान
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सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
 
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
 
नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
 
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
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