{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=हलाहल / हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
सुरा पी थी मैंने दिन चार
उठा था इतने से ही ऊब,
नहीं रुचि ऐसी मुझको प्राप्त
सकूँ सब दिन मधुता में डूब,
:::हलाहल से की है पहचान, :::लिया उसका आकर्षण मान, :::मगर उसका भी करके पान :::चाहता हूँ मैं जीवन-दान!</poem>