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अजेय / हरिवंशराय बच्चन

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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=|संग्रह=सतरंगिनी / हरिवंशराय बच्चन
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अजेय तू अभी बना!
 
न मंजिलें मिलीं कभी,
 
न मुश्किलें हिलीं कभीं,
 
मगर क़दम थमें नहीं,
 
क़रार-क़ौल जो ठना।
 
अजेय तू अभी बना।
 
सफल न एक चाह भी,
 
सुनी न एक आह भी,
 
मगर नयन भुला सके
 
कभी न स्‍वप्‍न देखना।
 
अजेय तू अभी बना!
 
अतीत याद है तुझे,
 
कठिन विषाद है तुझे,
 
मगर भविष्‍य से रूका
 
न अँखमुदौल खेलना।
 
अजेय तू अभी बना!
 
सुरा समाप्‍त हो चुकी,
 
सुपात्र-माल खो चुकी,
 
मगर मिटी, हटी, दबी
 
कभी न प्‍यास-वासना।
 
अजेय तू अभी बना!
 
पहाड़ टूटकर गिरा,
 
प्रलय पयोद भी घिरा,
 
मनुष्‍य है कि देव है
 
कि मेरुदंड है तना!
 
अजेय तू अभी बना!
</poem>
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