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|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}
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|आगे=प्रथम प्रश्न / भाग २ / प्रश्नोपनिषद / मृदुल कीर्ति सम्पादन
|सारणी=कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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<span class="mantra_translation">
सत्य काम, सुकेशा, भार्गव, आश्रलायन, कबंधी,<br>
सौर्यायणी, ये छः ऋषि, वेदों के अध्ययन संबन्धी।<br>
जिज्ञासु होकर वे ऋषि पिप्पलाद के आश्रम गए,<br>
सब हाथ में समिधा लिए, पिप्पलाद आश्रम आ गए॥ [ १ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
उन सुकेशा आदि ऋषियों से श्रेष्ठ मुनिवर ने कहा,<br>
सब एक वर्ष यहॉं रहो, करो ब्रह्मचर्य का व्रत महा।<br>
पुनि तपश्चर्या के अनंतर , प्रश्न इच्छित पूछना,<br>
ऋत ज्ञान होगा यदि मुझे सब कहूंगा स्नेही मना॥ [ २ ]<br><br>
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ऋषि कत्य प्रपौत्र कबंधी ने, पूछा ऋषि पिप्पलाद से,<br>
श्रधेय मुनिवर महिम श्रेष्ठ हे! सृष्टि किसके प्रसाद से?<br>
नियमित चराचर जीव कैसे, कौन, कैसा विधान है?<br>
है कौन इसका तत्व कारण, प्रश्न मेरा प्रधान है? [ ३ ]<br><br>
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निश्चय सृजन कर्ता प्रजाओं का प्रजापति श्रेष्ठ है,<br>
एक रयि, एक प्राण मिलकर सृजित सृष्टि यथेष्ट है।<br>
जग के पदार्थ हैं सब रयि, ज्ञातव्य जो दृष्टव्य है,<br>
प्राण रयि के योग से ,निर्मित है अतिशय भव्य है॥ [ ४ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
यह सूर्य ही है प्राण निश्चय, और रयि शुचि सोम है,<br>
आकारमय जल, तेज, भू, व् अमूर्त वायु व्योम है।<br>
यह पांचभौतिक तत्व जो कि मूर्त है, संसार में,<br>
ये सब रयि दृष्टव्य जो कि मूर्त हैं आकार में॥ [ ५ ]<br><br>
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निशि के अनंतर सूर्य पूर्व में, उदित होता नित्य है,<br>
चारों दिशा में रश्मियों में धारता आदित्य है।<br>
सब प्राणियों के प्राण को, किरणों में धारण रवि करे<br>
वह सर्व लोकों, सृष्टि की, दिनमान मुखरित छवि करे॥ [ ६ ] <br><br>
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जठराग्नि जो है प्राणियों में, वैश्वानर के नाम से,<br>
वह सूर्य का ही अंश, वितरित शक्ति है रवि धाम से।<br>
आदित्य की निष्पन्न शक्ति से, विश्व स्थिर, व्यक्त है,<br>
आदित्य बिन निष्प्राण जग है, शक्ति इसकी अव्यक्त है॥ [ ७ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
आधार जग का उदित रवि, अति आदि स्रोत है प्राण का,<br>
अति तप्त ज्योति के रश्मि पुंज हे ! विश्व रूप महान का।<br>
रवि मूल जीवन स्रोत्र इसकी, रश्मियों में प्राण हैं,<br>
जग के सभी व्यवहार , प्राणी , सूर्य बिन निष्प्राण हैं॥ [ ८ ]<br><br>
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