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सांध्य वंदना / सुमित्रानंदन पंत
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05:09, 3 अगस्त 2006
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जीवन का श्रम ताप
हरी
हरो
हे!<br>
सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!<br>
सूने जग गृह द्वार भरो हे!<br><br>
Lalit Kumar
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