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<poem>
प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये !
आ भी जाओ प्रिये, आ भी जाओ!
मौन मुखरित करो फ़िर कहूंगा तुम्हें
आ भी जाओ हां आ जाओ प्रिये !

ले कर कुमकुम का लाल रंग
लिए काजल सा काला रंग
नीले नभ सा ले नीला रंग
हरी दूब से चुरा कर हरा रंग

सिंदूरी संध्या सा स्वर्णिम
शुक्र तारक सा हीरक कण
जामुन से लेकर जामुनी भी
केसरिया, गुलाबी, धानी भी
नव-रंग नव-रस नव-उमंग है।

कल्पनाओं सी सजी अल्पनाएँ हैं
प्रीत के रंग तुम जी भर के देखो प्रिये
प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये !
</poem>
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