लेखक: [[सुमित्रानंदन पंत]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत]]}}{{KKCatKavita}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~'''युगपथ नामक रचना से'''
'''युगपथ''' नामक रचना से<poem>खिल उठा हृदय, पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय!
खिल उठा हृदयखुल गए साधना के बंधन,<br>पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय!<br><br>संगीत बना, उर का रोदन, अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण, सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।
खुल गए साधना के बंधन,<br>क्यों रहे न जीवन में सुख दुख संगीत बना, उर का रोदन,<br>क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख? अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण,<br>तुम रहो दृगों के जो सम्मुख सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।<br><br>प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!
क्यों रहे न जीवन तन में सुख दुख<br>आएँ शैशव यौवन क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?<br>तुम रहो दृगों मन में हों विरह मिलन के जो सम्मुख<br>व्रण, प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशययुग स्थितियों से प्रेरित जीवन उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!<br><br>
तन में आएँ शैशव यौवन<br>जो नित्य अनित्य जगत का क्रम मन में हों विरह मिलन के व्रणवह रहे, न कुछ बदले, हो कम,<br>युग स्थितियों से प्रेरित जीवन<br>हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम, उर रहे प्रीति में चिर तन्मयजग से परिचय, तुमसे परिणय!<br>
जो नित्य अनित्य जगत का क्रम<br>वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,<br>हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,<br>जग से परिचय, तुमसे परिणय!<br><br> तुम सुंदर से बन अति सुंदर<br>आओ अंतर में अंतरतर,<br>तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर<br>वरदान, पराजय हो निश्चय! <br><br/poem>