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07:21, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अरविन्द 'प्रकृति प्रेमी'
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<poem>
जौंन परसाद बांटि नि जाणी
सि तिमल्वा बंटवार बण्यां छन
पाड़ों का सन्टवार बण्यां छन।
अपड़ा तौंका खंडवार
हैका बन्द देखणा छन।
मरयां सर्पा आँखा घच्वाना
माछा-माछा सब्बि बोना
गाडा हाल क्वै नि देखणा छन।
अपड़ि गंगा सब्बि उन्द बगौणा,
हैके उब बगौण चाणा छन
झूठ लाण बल गाड पार
जु निभि जौ दिन चार
विकासा नौं पर जौंका पाड़,
भैंसा घिच्चा पर
फ्यूंलिया फूल धरयां छन
हे गिरिराज हिमालै!
यख त सुखा दगड़ि
काचा बि फूकेंणा छन
</poem>