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|रचनाकार=अरविन्द 'प्रकृति प्रेमी'
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<poem>
इक्कीसवीं सदी मा
न मनखि बदलि
न मनखि कु मन,
मनखि आज बि
जन कु तन ।
शिक्षा बदलि पण
समाज नि बदलि,
न बुरु रिवाज बदलि
न भेद -भाव बदलि
न जात-पात बदलि
इक्कीसवीं सदी मा
क्य खाक बदलि?
कुछ मनख्यों,
आज बि मन्दिरों
का द्वार बन्दै छन,
न मनख़्यों का
बणाया भगबान बदलिन
न मनखि बदलिन
इक्कीसवीं सदी मा
क्य खाक बदलि?
</poem>
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