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12:55, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
मेरे ज़ौके-जुस्तजू ने सर किये मिर्रीखो-माह
किस बलंदी पर है मेरे ज़हन की गहराइयाँ
ज़िन्दगी मेरे लिए है इक मुसल्सल रम्ज़-गाह
मेरे ज़ौके-जुस्तजू ने सर किये मिर्रीखो-माह
दूर-रस मेरा तसव्वुर, दूर-रस मेरी निगाह
दस्तरस में शौक़ की मेरे हैं सब पहनाइयां
मेरे ज़ौके-जुस्तजू ने, डर किये मिर्रीखो-माह
किस बुलंदी पर है मेरे ज़ेहन की गहराइयाँ।
</poem>