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13:03, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
ढूंढ लूंगा जिस दिन अपने आपको
मैं समझ लूंगा कि मंज़िल मिल गई
चाहे जैसे हो किसी कीमत भी हो
ढूंढ लूंगा जिस दिन अपने आपको
खुद ही मिट जाऊंगा सारी गो-मगो
फैल जायेगी यकीं की रौशनी
ढूंढ लूंगा जिस दिन अपने आपको
मैं समझ लूंगा कि मंज़िल मिल गई।
</poem>