993 bytes added,
13:11, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatTraile}}
<poem>
धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
छांव ने छीन लिया है मिरा आया मुझसे
किसी आसेब का पहरा था जो टलता तो न था
धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
अपनी पहचान से रिश्ता मिरा टूटा तो न था
अब तलब करता है शीशा मिरा चेहरा मुझ से
धूप के दश्त में भी ऐसा मैं तन्हा तो न था
छांव ने छीन लिया है मिरा आया मुझसे ।
</poem>