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लेती हैं मृदल हिलोरें?
बस गई एक बस्ती हैं है
स्मृतियों की इसी हृदय में
नक्षत्र लोक फैला है
टुकड़ी आँसू से गीली।
अवकाश भला हैं है किसको,
सुनने को करुण कथाएँ
बेसुध जो अपने सुख से
हैं बढ़ी जटा-सी कैसी
उड़ती हैं धूल हृदय में
किसकी विभूति हैं है ऐसी?
जो घनीभूत पीड़ा थी
बिजली माला पहने फिर
मुसक्याता मुसकाता था आँगन में हाँ, कौन बरस बरसा जाता था
रस बूँद हमारे मन में?
देखे ज्यों स्वप्न सवेरे।
मधु राका मुसक्याती मुसकाती थी
पहले देखा जब तुमको
परिचित से जाने कब के
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