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07:36, 17 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत
|संग्रह=
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<poem>
भाईड़ो रैवण दîो
थे म्हानै सैवण दîो
सदां सुणी है थारी बातां, आज तो म्हानै कैवण दîो
रै भाइड़ो रैवणदयो.....।
पाणी देस्यां बिजळी देस्यां
देस्यां बरतो पाटी
सुणता र्या म्है चमगूंगा बण
हुवै सदांई खाटी
म्हारै री पांती री दूध मळाई, सदां थेई तो चाटी
भाईड़ो रैवणदयो .....।
अजै देस मैं भूख तिरस स्यूं
मरै मिनख रा जाया
लाज बापड़ी फिरै उघाड़ी
छात कठै है भाया
धूड़ है थारै लोकराज नै, धन है थारी माया
भाईड़ो रैवणदयो.....।
अेक जणो त्रिसूल बांटै
दूजो बांटै लाठी
जलमभौम नै थां सिरखां ई
काकड़ियै ज्यूं बांटी
किरसै री धोती अंगरखी अजै तांई है पाटी
भाईड़ो रैवणदयो.....।
पांच बरस मैं मतलब री
मनवारां सारू आओ
जित्यां पछै आगलै ई दिन
परदेसी बण जाओ
दोनूं हांथां लूंट मचाओ खोस-खोस नै खाओ
भाईड़ो रैवणदयो .....।
आज देस मैं मूंछ्या नीची
खाली पूंछा हालै
अेक डोळ रा सगळा थे तो
कुण सो थान्नै पालै
राज है म्हारो करो थारली ऐ बातां किंयां चालै
भाईड़ो रैवणदयो .....।
पाणी पी पी पाण आवै
जद पेट बापड़ो पाटै
बदळै है देसां रा नक्सा
जद जद जनता जागै
म्हारै पाण जद आवैली तो थे भाजोला आगै
भाईड़ो रैवणदयो .....।
</poem>