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07:53, 17 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरिमोहन सारस्वत
|अनुवादक=
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<poem>
तुम्हारे जिस्म में
हाथ सिर्फ दो ही नहीं हैं
दो हाथों से जुड़े हैं
हजारों बन्धे हुए हाथ.
मां के गर्भ से निकलने के बाद
जिन्हे अभी खुलना है
बनाने हैं
रेत में छोटे-छोटे घर
जलाने हैं अंधियारे में आशादीप
टटोलो
महसूस करो
मेरे मित्र
उन बन्धे हुए हाथों को
खोल दो उनके बन्धन
फिर देखो
कितनी मुट्ठियां तनती हैं
कितने हाथ लहराते हैं
यह बताने को
तुम दो हाथों वाले नहीं
हजार हाथों वाले आदमी हो
</poem>
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