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रचते हुए / सुकेश साहनी
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मुर्दो में जिन्दा आदमी की तरह
ठहरना अगर पड़े तो
ठहरो
-
प्लेटफार्म पर सवारी गाड़ी की तरह
बरसों
बरसो
,बहो, गिरो, खिलो, चीखो, ठहरो
-
काला
लौह-खण्ड-सा
पत्थर
भुरभुरा कर फिर आ मिलेगा
मिट्टी की धारा
से
रचने लगेगा
तुम्हारे संग
गेहूँ की बालियाँ
से।
-0-
</poem>
वीरबाला
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